Monday, February 28, 2011

गुणों से गुनातीत की ओर

हरि ओम !

अपने सम्पूर्ण जीवन को हम तीन गुणों से प्रकाशित कर सकते है ! सत्त्व , रजस और तमस ! इन तीनों को पृथक - पृथक कर अच्छी तरह से समझना चाहिए ! जब हम तीनों को अच्छी तरह समझ पायेंगे तो ही विवेक करना आसान होगा ! विवेक करने का लक्ष्य सत्य और असत्य को समझना है ! गुणों के विवेक से ही हम सत्य की खोज के लिए साधनों को तय कर सत्य की और बढनें के लिए अपने को तैयार कर सकते है !

श्रीमद्भगवद्गीता के चतुर्दश अध्याय में श्री भगवान ने गुणों का विस्तृत वर्णन अपने प्रिय शिष्य अर्जुन के लिए किया है ! इस अध्याय में श्री कृपालु भगवान ने अर्जुन के गुणों के विषय में, सभी संशय का, बहुत प्रेम के साथ, पुनरावृति करते हुए, समाधान किया है ! गुणों के सही सही विवेक के लिए ये अध्याय बहुत महत्वपूर्ण है !

सत्त्व प्रकाश है , रजस हमें कार्य में प्रवृत करता है और तमस जड़ प्रकृति का सूचक है ! ये गुण है क्या ? क्या हम इन्हें देख सकते है ? देखिये बुद्धि को भी हम नहीं देख सकते ! लेकीन एक व्यक्ति के व्यवहार से ये पता कर सकते है की उसकी बुद्धि कैसी है ! सूक्ष्म शक्ति / वस्तु, वो है जिसे हम देख नहीं सकते , लेकीन वो अपना कार्य कर रही है ! स्थूल को हम देख सकते है ! स्थूल के व्यवहार / प्रकृति से हम देख सकते है की सूक्ष्म शक्ति / वस्तु का गुण क्या है ! बुद्धि सूक्ष्म शक्ति है ! बाह्य जगत में आपकी कार्यकुशलता को परख कर आपकी बुद्धि की स्थिति का पता किया जा सकता है ! दैनिक जीवन में नौकरियों हेतु साक्षात्कार के समय इस तरीके का प्रयोग किया जाता है !

अच्छा, ये बात भी यहाँ समझे, की सूक्ष्म शक्ति / वस्तु हमेशा स्थूल शक्ति / वस्तु से शक्तिशाली होती है ! इस जगत में जितने भी स्थूल वस्तु का निर्माण हुआ है , पहले वो किसी के बुद्धि में संकल्प के रूप में निर्मित हुई ! जब ताजमहल का निर्माण हुआ तो ताजमहल ने अपना रूप पहले शाहजहाँ के मन और बुद्धि में लिया ! बुद्धि जब तक मन को निर्देशित न करे तब तक मन कार्य को नहीं करवा सकता ! मन में जब ताजमहल का रूप आया तो बुद्धि ने उसे बनाने के निश्चय को दृढ़ किया ! इतना होने के बाद ही ताजमहल का निर्माण शुरू हुआ ! मनुष्य के शरीर में बुद्धि सबसे शक्तिशाली अंग है !

गुण भी बहुत शक्तिशाली है क्योंकि यह बुद्धि से भी अधिक सूक्ष्म है ! हम अपनी बाह्य व्यवहार को देखकर, गुणों का सही सही विवेक कर सकते है ! अपने खानपान की तरफ ध्यान दे ! अगर हमें मांस और बांसी खाना पसंद है तो हममें तमस गुण की मात्रा अधिक है ! अगर हमें तला भुना , तीखा , अधिक मसाले वाला खाना पसंद है, तो हममे रजस गुण की मात्रा अधिक है ! अगर हमें सादा और उबला खाना , फल पसंद है तो हममे सतोगुण की मात्रा अधिक है ! इसी तरफ अगर हम कामचोर है , चोरी के धन से अपना जीवन व्यापन करते है या फिर दुसरे के दुःख को देखकर खुश होते है तो हममें तमस गुण की मात्रा अधिक है ! अगर हम ज्यादा से ज्यादा धन अर्जित करने में लगे है और उसका सदुपयोग नहीं करते , दान नहीं करते और अपने स्वार्थ हेतु इस संसार में सारे कार्य करते है तो हममे रजस गुण की मात्रा अधिक है ! अगर हम सारा कार्य इस संसार में स्वार्थ नहीं, किन्तु सर्वजन हिताय हेतु करते है ! निष्काम कर्मयोग करते है ! शास्त्रों द्वारा निर्देशित, धार्मिक मार्ग से आचरण करते हुए धन का उपार्जन करते है , और ऐसे धन का सदुपयोग करते है , दान करते है तो इन परिस्थिति में हममे सत्वगुण की मात्रा अधिक है !

इस जगत के जितने भी प्राणी, पेड़ , पौधे या पदार्थ है, उन सबको इन तीनों गुणों के आधार पर बाँट सकते है ! किन्तु इन तीनो की मात्रा अलग अलग होने से उनकी प्रकृति अलग अलग हो जाती है ! सभी में ये तीन गुण है ! पेड़ में पीपल और निम् में सत्त्वगुण की मात्रा अधिक है ! आम के पेड़ में रजोगुण की मात्रा अधिक है ! बबुल के पेड़ में तमोगुण की मात्रा अधिक है ! इसी तरह पक्षियों में हंस में सत्त्वगुण की मात्रा अधिक है ! कबूतर में रजोगुण की मात्रा अधिक है ! कौवे में तमोगुण की मात्रा अधिक है !

सत्त्वगुण बढने से भय का निवारण होता है , हम और शक्तिशाली होते है , आनंद की वृद्धि होती है , हममे चेतनता बढती है और इसके साथ हमारी आयु भी बढती है ! सत्त्वगुण इश्वर की प्रकृति है ! हम जितना अपने में सत्त्वगुण बढ़ाते है, इश्वर / परमात्मा की तरफ उन्मुख होते है ! इस संसार में परमात्मा सबसे अधिक शक्तिशाली है ! इसलिए वो सूक्ष्म से भी सूक्ष्म , बहुत अधिक सूक्ष्म है ! रजोगुण में स्थूलता है और तमोगुण जड़ है ! अगर हममे तमोगुण जयादा होंगे तो हम स्थूल जगत की और ज्यादा आकर्षित होंगे और हमारा व्यवहार भी स्थूल होगा ! तमोगुण जड़ता का सूचक है ! जो भी पदार्थ इस जगत में स्थिर है , जिसमे चेतनता की मात्रा बहुत कम है वो तमोगुण पदार्थ है !

गुणों से गुनातीत होने की यात्रा स्थूल से सूक्ष्म होने की यात्रा है ! जितना अधिक सत्त्वगुण बढेगा , हम गुनातीत होने की अवस्था के नजदीक होंगे !

गुणों का विवेक करते हुए हमारी साधना सत्त्वगुण की वृद्धि की और अग्रसर होनी चाहिए ! बिना सत्त्वगुण बढाये परमात्मा की प्राप्ति, कतई संभव नहीं है !

सत्त्वगुण बढानें के साधन है यज्ञ , तप और दान ! इन साधनों की विस्तृत चर्चा हम आगे करेंगे !


गुरु की सेवा में प्रेम और ओम सहित !