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Tuesday, March 1, 2011

महाशिवरात्रि

हरि ओम,

महाशिवरात्रि पर्व के उपलक्ष में आपका हार्दिक अभिनन्दन ! भगवान शिव की कृपा आप पर, गुरु तत्त्व का अनुभव और शास्त्रों पर श्रद्धा, के रूप में हमेशा बनी रहे ! महाशिवरात्रि साधना हेतु अति उत्तम दिन है ! किसी भी दिन का उत्तम होना आपकी अपनी श्रद्धा और दृढ निश्चय पर आधारित है ! श्रद्धा और दृढ निश्चय तभी होगी जब कोई वस्तु सत्य होगा ! मिथ्या पर श्रद्धा और दृढ निश्चय कभी नहीं हो सकती ! क्योंकि मिथ्या का बदलाव निश्चित है ! मिथ्या कभी एक समान रह नहीं सकता !

हम अज्ञानवश अंधकार का जीवन जी रहे है ! मोहित है , मायाशक्ति से ! ये अज्ञान किसी एक जीवन का नहीं है ! पिछले कई जीवन से हम मोहित होकर अलग अलग रूप में इस मिथ्या जगत का मिथ्या अनुभव कर रहे है ! कोई जरूरी नहीं की पिछले कई जन्मो में हम जीव ही रहे हों ! सृष्टि का नियम क्रमागत उन्नति पर आधारित है! हो सकता है हम पत्थर, पौधे या फिर जानवर जैसे योनियों से उन्नत होते हुए मनुष्य रुपी मूल्यवान जीवन को प्राप्त हुए हों ! लेकीन इस मनुष्य जीवन प्राप्त करने के बाद भी हम इसे उद्देश्यित लक्ष्य की ओर लक्ष्यित नहीं कर पा रहे है ! कारण क्या है ? हमारी जड़ संस्कार जो मिथ्या जगत को सत्य समझे हुए है ! गुरुदेव ने मनुष्य के क्रमागत उन्नति पर बहुत सुंदर व्याख्या की है ! गुरुदेव कहते है, हमें साधना के जरूरी साधनों को अपनाते हुए जानवर-मनुष्य से इश्वर-मनुष्य की स्थिति तक पहुँचना होगा ! जड़ता नष्ट करने का यही साधन है !

साधकों को साधन मार्ग पर प्रगति करने हेतु उत्तम दिन का चयन करना होगा ! महाशिवरात्रि ऐसा ही पवित्र उत्तम दिन है ! बाबा शिव की अति कृपा है इस दिन को! सभी साधनावों को इस दिन अधिक फलिभूत होने का आशिर्वाद है ! जप, तप, ध्यान ओर उपवास जैसे साधन इस दिन कई गुना ज्यादा फल प्रदान करते है !

लेकीन एक तार्किक बुद्धि को सिर्फ इतना तर्क पर्याप्त नहीं है ! तो फिर हम बता दे की महाशिवरात्रि के दिन वैज्ञानिको ने पाया है की , इस दिन जो तारे ओर नक्षत्र है, वो एक बहुत ही साम्य ओर अनुकूल स्थिति में रहते है ! ऐसे में रात्रि का अधिक महत्व होता है ! मौसम ओर शरीर की स्थिति अनुकूल होती है ! ऐसे में, अगर हम साधना करे तो हमारी मन / बुद्धि अनुकूल स्थिति में हमे उस सत्य का दर्शन कराने हेतु संपुर्ण रूप से प्रस्तुत होती है !

यहाँ हम ये बता दे की गुरुदेव को भी सन्यास दीक्षा, महाशिवरात्रि के दिन ही, स्वामी शिवानंद जी से मिली थी !


गुरु की सेवा में प्रेम ओर ओम सहित !

Monday, February 28, 2011

गुणों से गुनातीत की ओर

हरि ओम !

अपने सम्पूर्ण जीवन को हम तीन गुणों से प्रकाशित कर सकते है ! सत्त्व , रजस और तमस ! इन तीनों को पृथक - पृथक कर अच्छी तरह से समझना चाहिए ! जब हम तीनों को अच्छी तरह समझ पायेंगे तो ही विवेक करना आसान होगा ! विवेक करने का लक्ष्य सत्य और असत्य को समझना है ! गुणों के विवेक से ही हम सत्य की खोज के लिए साधनों को तय कर सत्य की और बढनें के लिए अपने को तैयार कर सकते है !

श्रीमद्भगवद्गीता के चतुर्दश अध्याय में श्री भगवान ने गुणों का विस्तृत वर्णन अपने प्रिय शिष्य अर्जुन के लिए किया है ! इस अध्याय में श्री कृपालु भगवान ने अर्जुन के गुणों के विषय में, सभी संशय का, बहुत प्रेम के साथ, पुनरावृति करते हुए, समाधान किया है ! गुणों के सही सही विवेक के लिए ये अध्याय बहुत महत्वपूर्ण है !

सत्त्व प्रकाश है , रजस हमें कार्य में प्रवृत करता है और तमस जड़ प्रकृति का सूचक है ! ये गुण है क्या ? क्या हम इन्हें देख सकते है ? देखिये बुद्धि को भी हम नहीं देख सकते ! लेकीन एक व्यक्ति के व्यवहार से ये पता कर सकते है की उसकी बुद्धि कैसी है ! सूक्ष्म शक्ति / वस्तु, वो है जिसे हम देख नहीं सकते , लेकीन वो अपना कार्य कर रही है ! स्थूल को हम देख सकते है ! स्थूल के व्यवहार / प्रकृति से हम देख सकते है की सूक्ष्म शक्ति / वस्तु का गुण क्या है ! बुद्धि सूक्ष्म शक्ति है ! बाह्य जगत में आपकी कार्यकुशलता को परख कर आपकी बुद्धि की स्थिति का पता किया जा सकता है ! दैनिक जीवन में नौकरियों हेतु साक्षात्कार के समय इस तरीके का प्रयोग किया जाता है !

अच्छा, ये बात भी यहाँ समझे, की सूक्ष्म शक्ति / वस्तु हमेशा स्थूल शक्ति / वस्तु से शक्तिशाली होती है ! इस जगत में जितने भी स्थूल वस्तु का निर्माण हुआ है , पहले वो किसी के बुद्धि में संकल्प के रूप में निर्मित हुई ! जब ताजमहल का निर्माण हुआ तो ताजमहल ने अपना रूप पहले शाहजहाँ के मन और बुद्धि में लिया ! बुद्धि जब तक मन को निर्देशित न करे तब तक मन कार्य को नहीं करवा सकता ! मन में जब ताजमहल का रूप आया तो बुद्धि ने उसे बनाने के निश्चय को दृढ़ किया ! इतना होने के बाद ही ताजमहल का निर्माण शुरू हुआ ! मनुष्य के शरीर में बुद्धि सबसे शक्तिशाली अंग है !

गुण भी बहुत शक्तिशाली है क्योंकि यह बुद्धि से भी अधिक सूक्ष्म है ! हम अपनी बाह्य व्यवहार को देखकर, गुणों का सही सही विवेक कर सकते है ! अपने खानपान की तरफ ध्यान दे ! अगर हमें मांस और बांसी खाना पसंद है तो हममें तमस गुण की मात्रा अधिक है ! अगर हमें तला भुना , तीखा , अधिक मसाले वाला खाना पसंद है, तो हममे रजस गुण की मात्रा अधिक है ! अगर हमें सादा और उबला खाना , फल पसंद है तो हममे सतोगुण की मात्रा अधिक है ! इसी तरफ अगर हम कामचोर है , चोरी के धन से अपना जीवन व्यापन करते है या फिर दुसरे के दुःख को देखकर खुश होते है तो हममें तमस गुण की मात्रा अधिक है ! अगर हम ज्यादा से ज्यादा धन अर्जित करने में लगे है और उसका सदुपयोग नहीं करते , दान नहीं करते और अपने स्वार्थ हेतु इस संसार में सारे कार्य करते है तो हममे रजस गुण की मात्रा अधिक है ! अगर हम सारा कार्य इस संसार में स्वार्थ नहीं, किन्तु सर्वजन हिताय हेतु करते है ! निष्काम कर्मयोग करते है ! शास्त्रों द्वारा निर्देशित, धार्मिक मार्ग से आचरण करते हुए धन का उपार्जन करते है , और ऐसे धन का सदुपयोग करते है , दान करते है तो इन परिस्थिति में हममे सत्वगुण की मात्रा अधिक है !

इस जगत के जितने भी प्राणी, पेड़ , पौधे या पदार्थ है, उन सबको इन तीनों गुणों के आधार पर बाँट सकते है ! किन्तु इन तीनो की मात्रा अलग अलग होने से उनकी प्रकृति अलग अलग हो जाती है ! सभी में ये तीन गुण है ! पेड़ में पीपल और निम् में सत्त्वगुण की मात्रा अधिक है ! आम के पेड़ में रजोगुण की मात्रा अधिक है ! बबुल के पेड़ में तमोगुण की मात्रा अधिक है ! इसी तरह पक्षियों में हंस में सत्त्वगुण की मात्रा अधिक है ! कबूतर में रजोगुण की मात्रा अधिक है ! कौवे में तमोगुण की मात्रा अधिक है !

सत्त्वगुण बढने से भय का निवारण होता है , हम और शक्तिशाली होते है , आनंद की वृद्धि होती है , हममे चेतनता बढती है और इसके साथ हमारी आयु भी बढती है ! सत्त्वगुण इश्वर की प्रकृति है ! हम जितना अपने में सत्त्वगुण बढ़ाते है, इश्वर / परमात्मा की तरफ उन्मुख होते है ! इस संसार में परमात्मा सबसे अधिक शक्तिशाली है ! इसलिए वो सूक्ष्म से भी सूक्ष्म , बहुत अधिक सूक्ष्म है ! रजोगुण में स्थूलता है और तमोगुण जड़ है ! अगर हममे तमोगुण जयादा होंगे तो हम स्थूल जगत की और ज्यादा आकर्षित होंगे और हमारा व्यवहार भी स्थूल होगा ! तमोगुण जड़ता का सूचक है ! जो भी पदार्थ इस जगत में स्थिर है , जिसमे चेतनता की मात्रा बहुत कम है वो तमोगुण पदार्थ है !

गुणों से गुनातीत होने की यात्रा स्थूल से सूक्ष्म होने की यात्रा है ! जितना अधिक सत्त्वगुण बढेगा , हम गुनातीत होने की अवस्था के नजदीक होंगे !

गुणों का विवेक करते हुए हमारी साधना सत्त्वगुण की वृद्धि की और अग्रसर होनी चाहिए ! बिना सत्त्वगुण बढाये परमात्मा की प्राप्ति, कतई संभव नहीं है !

सत्त्वगुण बढानें के साधन है यज्ञ , तप और दान ! इन साधनों की विस्तृत चर्चा हम आगे करेंगे !


गुरु की सेवा में प्रेम और ओम सहित !

Wednesday, January 19, 2011

साधना


हरि ओम ,

जीवन में शास्त्रों का अध्ययन और गुरु की सेवा एक महत्वपूर्ण लक्ष्य होना चाहिए ! यही साधना है ! धीरे धीरे साधना के पथ पर अग्रसर होते होते ये लक्ष्य के अलावा कोई और लक्ष्य नहीं रह जाये , ऐसा होना चाहिए ! अगर ऐसा हो तो समझे की साधना फलिभूत हो रही है !

हमारे सभी दुखों का कारण अज्ञान है ! अगर हम इस सत्य को भलीभांति अपनी बुद्धि से समझ कर अनुभव कर ले तो फिर साधना कठिन नहीं रह जाती !

फिर तो समझो आग लग गई है ! ऐसी लगन लगेगी की, कैसे भी पहुंचोगे ! यहाँ से गुरु की सेवा शुरू ! गुरु की सच्ची सेवा शास्त्रों का अध्ययन कर उसे अपने जीवन में अनुभव करना है ! ऐसी स्तिथि में कृपा मांगने की जरुरत नहीं ! कृपा तो जैसे बरसने लगती है ! गुरु ज्ञान के रूप में सामने होते है !



गुरु की सेवा में प्रेम और ओम सहित !