Friday, January 21, 2011

“क्या फायदा” - वेदान्त का अध्ययन


हरि ओम ।


वेदान्त का अध्ययन एक साधारण मनुष्य के लिए क्यों महत्वपूर्ण है । क्या फल है इसके अध्ययन का? आज भौतिक जगत के इस युग में, जहां पदार्थ अति महत्वपूर्ण हो गए है, और सभी कार्यों को फायदे के रूप में देखा जाता है, हमें भी वेदान्त अध्ययन से क्या फायदा, ऐसा बताना महत्वपूर्ण लग रहा है।

वेदान्त - फायदे का अध्ययन - साधारण मनुष्य के लिए

आज सभी मनुष्यों को, चाहे वो किसी भी क्षेत्र में कार्यरत हो, निम्नलिखित समस्या का समाधान चाहिए

आदिभौतिक समस्या

1) मेरी आय कम है। में जो भी कमाता हूँ पूरा नहीं होता।

2) मेरे बच्चे मेरी बताए हुए मार्ग पर नहीं चलते। इस समस्या का क्या हल है?

3) मेरे माता और पिता मेरे बताये हुए मार्ग पर नहीं चलते । इस समस्या का क्या हल है?

4) कार्यालय में मेरे अधिकारी मेरी बाते नहीं सुनते। उनकी बाते मुझे अच्छी नहीं लगती। उनके मेरे किसी भी गलत कार्य पर क्रोधित होने पर में घंटो उसपर विचार करता रहता हूँ और परेशान रहता हूँ ।

5) मेरी पत्नी या पति मेरी बात नहीं सुनते। हम दोनों में सभी विषय पर झगड़ा होता है।

6) मुझे सभी विषय पर निर्णय लेने में समस्या होती है ।

7) में कई तरह के बिमारियों से परेशान हूँ।

8)में अवसाद (depression) का मरीज हूँ ।

9) में जरावस्था के दुःख से परेशान हूँ ।

10) में तुरंत क्रोधित हो जाता हूँ ।

11) मुझे दूसरे के सुख को देखकर जलन होती है ।

भौतिक का अर्थ है , पञ्च महाभूत से संबन्धित । आकाश , वायु , अग्नि , जल और पृथ्वी से बना जगत और उसकी सारी क्रियाएँ भौतिक कहलाएगी । हमारा स्थूल शरीर और कुछ स्तर तक सूक्ष्म शरीर, भी भौतिक है । ये शरीर , मन और बुद्धि से जो भी क्रियाएँ करें वो भौतिक है । इसको करने में जो समस्या आये वो आदिभौतिक समस्या है ।

आदिदैविक समस्या

1) बाढ मैं मेरी सारे फसल खराब हो गए।

2) आग लगने के कारण मुझे काफी नुकसान हुआ है ।

3) तूफ़ान में मेरा घर नष्ट हो गया है ।

इस जगत के सारे कार्य, शक्तियों के माध्यम से हो रहा है । यह शक्तियां ही देव है। ये शक्तियां स्थूल शरीर और जगत को एक नियम के अनुसार पोषित और मार्गदर्शन प्रदान करती है । हम जब अन्न देवता कहते है तो हमारा संकेत अन्न में स्थित नियम शक्ति पर होती है । इसे बहुत सहज भाषा में प्रकृति का नियम कहा जा सकता है । प्रकृति के नियम पर हमारा कोई वश नहीं है । इनसे जो समस्या प्रकट हो उसे आदिदैविक समस्या कहते है ।

कारण शरीर और उसे भोगने हेतु उत्पन्न जगत जिस नियम से कार्य करती है , उस नियम से उत्पन्न समस्या ही आदिदैविक समस्या है ।

आध्यात्मिक समस्या

1) मुझे भगवान के दर्शन नहीं होते ।

2) मन बहुत चंचल है, ध्यान नहीं लगता ।

3) भगवान ने इस संसार की रचना क्यों की ?

4) संसार की रचना कैसे हुई ?

5) इस जीवन का उद्देश्य क्या है ?

6) सही और गलत क्या है ?

7) कर्म कैसे हो ?

8) इस जीवन में अच्छे लोगो को दुःख क्यों सहना पड़ता है ?

9) क्या दुःख का कोई अंत है ?

10) कौनसी साधना सही है ?

11) क्या शिव भगवान की पूजा करो तो विष्णु भगवान क्रोधित होंगे ? मैं किसकी पूजा करू ?

12) क्या ध्यान में मुझे भगवान के दर्शन होंगे ?

जब आप उस तत्व को समझना चाहे, जो स्थूल , सूक्ष्म और कारण शरीर और इस जगत की नियंता है । जो सभी क्रियावों को चेतना प्रदान करती है । जो सत्य है । जिसके कारण से इस जगत में सारा आनंद है । जिसको जानने से सब जाना हुआ हो जाता है । जिसको जानने से, हम ऐसी स्थिति में पहुँच जाते है जहाँ सिर्फ आनंद है । ऐसे परम आनंद और परमार्थ के मार्ग पर साधना करते हुए जो समस्याएं आये उसे आध्यात्मिक समस्या कहते है ।

वेदांत अध्ययन करना, अध्ययन के बाद मनन करना और उसे अपने जीवन में ठीक-ठीक अनुभव करना ही जीवन का परम लक्ष्य होना चाहिए । वेदांत साधना, सारे सम्स्यावों और दुखों का समाधान करते हुए हमें आनंद में स्थित कर देती है। इन सम्स्यावों का समाधान सही अर्थ में स्थूल से सूक्ष्म तक की यात्रा है । जब हम सूक्ष्म से सूक्ष्म अति सूक्ष्म तक पहुँच जाते है तो समस्या रह ही नहीं जाती।

है न फायदे का सौदा ।

गुरु की सेवा में प्रेम और ओम सहित ।

Wednesday, January 19, 2011

साधना


हरि ओम ,

जीवन में शास्त्रों का अध्ययन और गुरु की सेवा एक महत्वपूर्ण लक्ष्य होना चाहिए ! यही साधना है ! धीरे धीरे साधना के पथ पर अग्रसर होते होते ये लक्ष्य के अलावा कोई और लक्ष्य नहीं रह जाये , ऐसा होना चाहिए ! अगर ऐसा हो तो समझे की साधना फलिभूत हो रही है !

हमारे सभी दुखों का कारण अज्ञान है ! अगर हम इस सत्य को भलीभांति अपनी बुद्धि से समझ कर अनुभव कर ले तो फिर साधना कठिन नहीं रह जाती !

फिर तो समझो आग लग गई है ! ऐसी लगन लगेगी की, कैसे भी पहुंचोगे ! यहाँ से गुरु की सेवा शुरू ! गुरु की सच्ची सेवा शास्त्रों का अध्ययन कर उसे अपने जीवन में अनुभव करना है ! ऐसी स्तिथि में कृपा मांगने की जरुरत नहीं ! कृपा तो जैसे बरसने लगती है ! गुरु ज्ञान के रूप में सामने होते है !



गुरु की सेवा में प्रेम और ओम सहित !