Sunday, October 18, 2009

प्रेय और श्रेय

हरिः ओम्!
जीवन की प्रत्येक परिस्थिति में हमारी प्रतिक्रिया की दो प्रकार की सम्भावना होती है। यह श्रेय या प्रेय के रूप में होती है, जो हमें प्रतिक्रिया के लिए प्रेरित करती है। यदि हम परिस्थिति में श्रेय को आश्रित करके कार्य करते हैं, तो हमें उसके अनुरूप परिणाम प्राप्त होता है, तथा हम धर्मपथगामी होकर अनुग्रहीत होते हैं। जब कि प्रेयका आश्रय लेने से वह हमारे लिए संसारी उल्झनों के द्वार खोल देती है, तथा परिणाम स्वरूप तनाव, चिन्ताएं, कमजोरी और भय से ग्रसित होते जाते हैं। कठोपनिषद् यह उद्धोष करता है कि जो श्रेय मार्ग का अनुसरण करता है, वह शीघ्र ही अच्छे मूल्यों से युक्त होता है। वह अपने आपको ईश्वर का कृपापात्र जानकर धन्य होता है। यह पथ उसे अन्ततः अपने स्वस्वरूप के ज्ञान की और ले जाता है। जब कि प्रेय मार्ग का आश्रय लेने वाला व्यक्ति का सतत पतन होता जाता है। श्रेय मोटे रूप से उचित को कहते हैं, और यह वो विकल्प होता है जो सब के लिए हितकारी होता है, फिर चाहे वह व्यक्तिगत रूप से अनुकूल हो या न हो। जो भी अपने रिश्ते-नातों के लिए जीता है, या पूरे राष्ट्र वा पूरे विश्व के लिए ही जीता है, वह अपनी व्यक्तिगत अनुकूलता और प्रतिकूलता की परवाह किए बिना इस विकल्प को स्वीकारता है, जो सब के लिए कल्याणकारी होता है। जब कि जो व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत अनुकूलता, सुख, सफलता और खुशियां चाहता है, वह प्रेय मार्ग का ही अनुसरण करता है। वह स्वकेन्द्रित, जड़ता से युक्त और यहां तक की जो उनके मार्ग में आता है उनके प्रति हिंसक भी हो सकता है। वे लोग बहुत संकुचित दृष्टि से युक्त होते हैं, वे जगत में एक संवादिता नहीं देख पाते हैं। वे अपनी ‘मैं और मेरा’ की छोटी दुनिया में ही जीते हैं। वे लोग मंदिर व गुरु के पास भी जाते हैं, किन्तु अपनी व्यक्तिगत समस्याओं और सफलता से ही ज्यादातर चिन्तित रहते हैं, न कि जीवन के शाश्वत सत्य को जानने के इच्झुक होते हैं। वे एक ककून में ही जीवन भर अकेले होकर तनावयुक्त और दुःखी जीवन जीते हैं। वे ही समाज में हिंसा और दुःख अशान्ति के लिए कारण होते हैं। अतः शास्त्र हमें प्रत्येक परिस्थिति में प्राप्त इन दोनों विकल्पों को पहचान कर उचित और कल्याणकारी मार्ग श्रेय का ही चयन करने के लिए प्रेरित करते हैं। श्रेय मार्ग पर चलना ही वास्तविक धर्म है। जो श्रेय मार्ग पर चलते हैं, वे ही अपनी पूर्णता का वास्तविक परिचय भी देतें हैं।
प्रेम और ओम् सहित, स्वामी आत्मानन्द सरस्वती

Sunday, October 11, 2009

श्री हनुमान चालीसा और वेदान्त - एम पी थ्री


चालीस चौपाईयों वाली श्री हनुमान चालीसा गोस्वामी तुलसीदास जी की अनुपम रचना है। भगवान की स्तुति है ये। श्री रामचरितमानस में भगवान हनुमान जी के चरित्र को देखते हुए श्री हनुमान चालीसा एक सटीक और अदभुत रचना है। ऐसी मान्यता है कि इसको बारम्बार पढ़ने वालों को प्रभु का सानिध्य अवश्य होता है।


वक्ता परिचय


परम पूज्य गुरुजी स्वामी तेजोमयानन्द जी इस समय चिन्मय मिशन के विश्व प्रमुख है। गुरुदेव स्वामी चिन्मयान्द जी के अति प्रिय शिष्यो मे एक है। चिन्मय मिशन आज एक वृहद रुप धारण कर चुका है। ये अतिश्योक्ति नहीं होगी अगर हम ये पूछे कि विश्व में ऐसी कौन सी जगह है जहाँ चिन्मय मिशन केन्द्र नहीं है। असंख्य लोगो को आध्यात्मिक दिशा दिखाने वाली इस संस्था के मन और बुद्धि गुरुदेव है तो इसके प्राण गुरुजी है।

हनुमान चालीसा की ऐसी सुन्दर व्याख्या सिर्फ गुरुजी ही कर सकते है।


http://vedantijeevan.com:9700/tejomaya/hanumanchalisha.html