हरि ओम ,
जीवन में शास्त्रों का अध्ययन और गुरु की सेवा एक महत्वपूर्ण लक्ष्य होना चाहिए ! यही साधना है ! धीरे धीरे साधना के पथ पर अग्रसर होते होते ये लक्ष्य के अलावा कोई और लक्ष्य नहीं रह जाये , ऐसा होना चाहिए ! अगर ऐसा हो तो समझे की साधना फलिभूत हो रही है !
हमारे सभी दुखों का कारण अज्ञान है ! अगर हम इस सत्य को भलीभांति अपनी बुद्धि से समझ कर अनुभव कर ले तो फिर साधना कठिन नहीं रह जाती !
फिर तो समझो आग लग गई है ! ऐसी लगन लगेगी की, कैसे भी पहुंचोगे ! यहाँ से गुरु की सेवा शुरू ! गुरु की सच्ची सेवा शास्त्रों का अध्ययन कर उसे अपने जीवन में अनुभव करना है ! ऐसी स्तिथि में कृपा मांगने की जरुरत नहीं ! कृपा तो जैसे बरसने लगती है ! गुरु ज्ञान के रूप में सामने होते है !
गुरु की सेवा में प्रेम और ओम सहित !
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