कैवल्योपनिषद् पर 1998 में बाबाजी (परम पूज्य स्वामी शंकरानन्द जी) द्वारा मेरठ में शिविर का आयोजन हुआ था। परमात्मा कण कण में है। यह जगत ही परमात्मा का रुप है। शास्त्र कहते है जब तक गुरु के चरणों मे बैठकर श्रवण न किया जाये उपनिषद् सिर्फ शब्द है। अनुभव में नही आ सकता। ज्ञान जीवन में उतरे और अनुभव मे आये तब सफलता माने। अन्यथा बुद्धि विलास के लीए उपनिषद् की जरुरत नहीं।
चिन्मय मिशन के बाबाजी का शरीर तो आज हमारे साथ नहीं है। लेकीन उनकी आर्शीवाद से आज उनका यह वीडियो हमारे पास है। इसका पूरा श्रेय मेरठ के सींघल साहब को जाता है। अगर उन्होनें इस वीडियो को न सहेजा होता तो आज हमे यह प्राप्त नहीं हो सकती थी।
''जानेनैव तु कैवल्यम'' अर्थात् ज्ञान से ही कैवल्य (मोक्ष) प्राप्त होता है। आत्मज्ञान मोक्ष का साक्षात् साधन है। कैवल्यौपनिषद एक सुंदर ग्रन्थ है जिसकी भाषा में सरलता व मधुरता है और अर्थ में गहन गंभीरता है। अपनी अनुपम शैली में आत्मबोध कराकर यह उपनिषद् धयानाभ्यास की विधि का भी विशद वर्णन करता है जो साधको के लिए अत्यंत उपयोगी है।18 घंटे के इस प्रवचन को अगर ध्यान से सुना जाए तो अनुभव दुर नहीं।
pravachan sunne ke liye kahan click karna hai krapya batayen. sunne ko utsuk hun
ReplyDeleteHari Om!
ReplyDeleteLink niche diya hai.
Love and Om!