Friday, November 14, 2008

वेदान्त अध्ययन विधि

वेदान्त अध्ययन विधि
वेदान्त विज्ञान है, अत: उसका अध्ययन व्यवस्थित रुप में करना चाहिए। प्रथम पुस्तक 'जीवन-ज्योति' से अध्ययन प्रारम्भ करना चाहिए। इसे भी जल्दी-जल्दी न पढ़ें। यह कोई उपन्यास या कोई हल्की-फुल्की पुस्तक नहीं है। इन पुस्तकों को पढ़ कर इनके ऊपर स्वयं विचार करना आवश्यक है। इसलिए एक बार में 5 या 10 पृष्ठ ही पढ़े। पुस्तक धीरे-धीरे, विचार करते हुए पढ़ें और उसमें निरुपित सिद्धान्तों की सत्यता पर चिन्तन करें। इस प्रकार पढ़ने से 20-30 मिनट लग सकते हैं। इनके पढ़ने का समय प्रात:काल नाश्ता करने के बाद उपयुक्त होगा। पुस्तक पढ़ने के बाद दिन का कार्य प्रारम्भ करें।

इसके पढ़ने के पर आपके मन में अनेक शंकायें उठेंगी। कुछ सिद्धान्त आपको तर्कहीन एवं अव्यावहारिक लग सकते हैं। उन शंकाओं को आप अपनी नोट बुक में लिख लें। यह नोट-बुक इसी कार्य के लिए अलग रखें। अपनी शंकाओं को स्पष्ट रुप में व्यक्त करें। उन्हें लिखने के बाद आप भूल जायें और पुस्तक को नित्य आगे पढ़ते रहें।

अगले रविवार या किसी छुट्टी के दिन जब खाली समय मिले, उस नोट-बुक को उठाकर अपनी पुरानी शंकाओं को पढें। एक सप्ताह में आपने जितनी शंकायें की, उन पर विचार कर देखें, क्या वे अब भी अनुत्तरित हैं। आपको यह देख कर आश्चर्य होगा, अब बहुत सी शंकायें निवृत्त हो गयी हैं। एक सप्ताह के अध्ययन से आपका ज्ञान बढा है।
फिर भी कुछ प्रश्न ऐसे हो सकते हैं जिनका उत्तर आपको अभी नहीं मिला है। उन्हें अभी मत काटें। सोमवार से अपने अध्ययन का कार्यक्रम पुनः आगे बढायें। नई शंकायें उत्पन्न हों, उन्हें पुनः लिखते जायें। सप्ताह के अन्त में पूर्ववत् उन प्रश्नों पर फिर विचार करें। इस क्रम से अध्ययन करते रहने पर पुस्तक समाप्त होने तक आप देखेंगे कि आफ सभी प्रश्नों का उत्तर मिल गया है। यदि कदाचित् कुछ प्रश्न रह गये हैं तो उनका समाधान अगली पुस्तक में मिल जायेगा।
अध्ययन धीरे-धीरे करो। कोई जल्दी नहीं है। आफ स्वतन्त्र चिन्तन की अत्यधिक आवश्यकता है। किसी सिद्धान्त को बिना विचार किये स्वीकार मत कर लो। उसकी सत्यता पर विचार करो। अपनी समझ में आना बहुत आवश्यक है। तभी वेदान्त विज्ञान में प्रवेश होगा, आप उसका ज्ञान धारण कर सकेंगे।
जीवन-ज्योति पूरी पढ लेने और उसकी पुनरावृत्ति कर लेने के बाद स्वाध्याय पाठ्यक्रम देखें और अगली पुस्तक अध्ययन के लिए हाथ में लें। पुस्तकों को क्रमानुसार ही पढे और थोडा-थोडा करके धीरे-धीरे पढें। कुल पाठ्यक्रम आधा घण्टा नित्य पढ कर दो-तीन वर्ष में पूरा होगा।
प्रयास करें, आप इसे कर सकते हैं, करना भी अवश्य चाहिए।
स्वामी चिन्मयानन्द

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