पञ्चदशी
विवेक, वैराग्य, षट्सम्पत्ति और मुमुक्षत्व साधन चतुष्ट्य कहलाते हैं। इन गुणों से सम्पन्न पुरुष तत्त्वज्ञान का अधिकारी होता है। अत: इन्हीं गुणों को अधिकारी पुरुष का लक्षण भी मानते हैं। नित्य और अनित्य वस्तु की पहचान करने वाली बुध्दि का नाम है विवेक। विषय सुख की अनित्यता समझ कर उनका राग त्याग देना वैराग्य है। शम, दम, उपरति, तितिक्षा, श्रध्दा और समाधान ये षट्सम्पत्तियां हैं। अध्यात्म पथ पर इन्हीं के बल पर प्रगति होती है। इसलिए इन्हें आध्यात्मिक सम्पत्ति कहते हैं। कर्म-बंधन और उससे प्राप्त होने वाले जन्म-मृत्यु के दु:खों को हेय समझकर उनसे छुटकारा पाने की प्रबल इच्छा का नाम मुमुक्षा है।
-शेष भाग
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